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Showing posts from June, 2021

Chapekar Brothers

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  जिसके *पिता ने लिखी सत्यनारायण कथा,* और उनके 3 बेटों ने *‘इज्जत लूटने वाले’* अंग्रेज *को मारा और चढ़ गये फाँसी* पर... आज अगर कोई कहे कि घर में पूजा है, तो यह माना जा सकता है कि *“सत्यनारायण कथा”* होने वाली है।  ऐसा हमेशा से नहीं था। दो सौ साल पहले के दौर में घरों में होने वाली पूजा में सत्यनारायण कथा सुनाया जाना उतना आम नहीं था।  हरि विनायक ने कभी *1890 के आस-पास स्कन्द पुराण में मौजूद इस संस्कृत कहानी का जिस रूप में अनुवाद किया, हम लोग लगभग वही सुनते हैं।* *हरि विनायक* की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी और वे दरबारों और दूसरी जगहों पर कीर्तन गाकर आजीविका चलाते थे। कुछ तो आर्थिक कारणों से और कुछ अपने बेटों को अपना काम सिखाने के लिए उन्होंने अपनी *कीर्तन मंडली* में अलग से कोई संगीत बजाने वाले नहीं रखे।  उन्होंने अपने तीनों बेटों को इसी काम में लगा रखा था। *दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव को इसी कारण कोई ख़ास स्कूल की शिक्षा नहीं मिली।* संस्कृत और मराठी जैसी भाषाएँ इनके लिये परिवार में ही सीख लेना बिलकुल आसान था। ऊपर से लगातार दरबार जैसी जगहों पर आने-जाने के कारण अपने समय के बड़े पंडितों के
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🌹कोई काम छोटा नही 🌹

*💐💐काम कोई भी छोटा नहीं💐💐* एक बार भगवान अपने एक निर्धन भक्त से प्रसन्न होकर उसकी सहायता करने उसके घर साधु के वेश में पधारे। उनका यह भक्त जाति से चर्मकार था और निर्धन होने के बाद भी बहुत दयालु और दानी प्रवृत्ति का था। वह जब भी किसी साधु-संत को नंगे पाँव देखता तो अपने द्वारा गाँठी गई जूतियाँ या चप्पलें बिना दाम लिए उन्हें पहना देता। जब कभी भी वह किसी असहाय या भिखारी को देखता तो घर में जो कुछ मिलता, उसे दान कर देता। उसके इस आचरण की वजह से घर में अकसर फाका पड़ता था। उसकी इन्हीं आदतों से परेशान होकर उसके माँ-बाप ने उसकी शादी करके उसे अलग कर दिया, ताकि वह गृहस्थी की ज़िम्मेदारियों को समझें और अपनी आदतें सुधार। लेकिन इसका उस पर कोई असर नहीं हुआ और वह पहले की ही तरह लोगों की सेवा करता रहा। भक्त की पत्नी भी उसे पूरा सहयोग देती थी। ऐसे भक्त से प्रसन्न होकर ही भगवान उसके घर आए थे, ताकि वे उसे कुछ देकर उसकी निर्धनता दूर कर दें तथा भक्त और अधिक ज़रूरतमंदों की सेवा कर सके। भक्त ने द्वार पर साधु को आया देख अपने सामर्थ्य के अनुसार उनका स्वागत सत्कार किया। वापस जाते समय साधू भक्त को

रामदेवरा बाबा एक परिचय।

बाबा रामदेव जी की जन्म कथा। श्री कृष्ण के अवतार और सब धर्मों के श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी करने वाले बाबा रामदेव जी हिंदुओं और मुसलमानों के पुज्य हैं। इनका तीर्थ राजस्थान के जैसलमेर जिले के रामदेवरा में स्थित है। यहां रेल और सड़क मार्ग से पहुंच जा सकता है। हिंदुओं की मान्यता के अनुसार बाबा रामदेव जी का जन्म 1409 ई में भाद्रपद शुक्ल द्वित्या को राजस्थान के बाड़मेर में हुआ बताया जाता है। इनके पिता रुणिचा के शासक अजमल जी थे, माता का नाम मैणादे था। इनके एक बड़े चचेरे भाई का नाम विरमदेव जी था। ऐसा कहा जाता है कि तोमर वंशीय पोकरण के राजा अजमल जी के यहां कोई संतान नहीं हुई थी। अजमल जी प्रजा को ही अपनी संतान समझते थे। प्रजा की सुख सुविधा में ही उन्होंने अपना जीवन समर्पण कर दिया था। अचानक एक घटना जिसमे उन्हें उनकी जनता ने ही उन्हें निसंतान होने का अहसास कराया। जब उन्हे पता चला की उनकी जनता में कुछ लोग निसंतान व्यक्ति के दर्शन को अपशकुन मानते हैं, तो अजमल जी ने द्वारकाधीश कि अर्चना आरंभ की। राजा अजमल जी ने भगवान द्वारिकाधीस की इतनी भक्ति की कि की भगवान ने इन्हे आशीर्वाद दिया कि मैं

🌹SHREE KHATU SHYAM BABA🌹

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🌹*खाटू श्याम बाबा की कहानी* 🌹 राजस्थान के सीकर जिले में श्री खाटू श्याम जी का सुप्रसिद्ध मंदिर है। वैसे तो खाटू श्याम बाबा के भक्तों की कोई गिनती नहीं है । लेकिन इनमें खासकर वैश्य, मारवाड़ी जैसे व्यवसायी वर्ग अधिक संख्या में है।श्याम बाबा कौन थे, उनके जन्म और जीवन चरित्र के बारे में जानते हैं इस लेख में. खाटू श्याम बाबा कौन हैं खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है. महाभारत की एक कहानी के अनुसार बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफना दिया  गया था इसीलिए बर्बरीक जी का नाम खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ. वर्तमान में खाटूनगर सीकर जिले के नाम से जाना जाता है. खाटू श्याम बाबा जी कलियुग में श्री कृष्ण भगवान के अवतार के रूप में माने जाते हैं. श्याम बाबा घटोत्कच और नागकन्या नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं. पांचों पांडवों में सर्वाधिक बलशाली भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा बर्बरीक के दादा दादी थे. कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे, अतः उनका नाम बर्बरीक रखा गया. बर्बरीक का नाम श्याम बाबा (Shyam Baba) कैसे पड़ा, आइये इसकी कहानी जानते हैं. बर्बरीक बचपन में