Chapekar Brothers
जिसके *पिता ने लिखी सत्यनारायण कथा,* और उनके 3 बेटों ने *‘इज्जत लूटने वाले’* अंग्रेज *को मारा और चढ़ गये फाँसी* पर... आज अगर कोई कहे कि घर में पूजा है, तो यह माना जा सकता है कि *“सत्यनारायण कथा”* होने वाली है। ऐसा हमेशा से नहीं था। दो सौ साल पहले के दौर में घरों में होने वाली पूजा में सत्यनारायण कथा सुनाया जाना उतना आम नहीं था। हरि विनायक ने कभी *1890 के आस-पास स्कन्द पुराण में मौजूद इस संस्कृत कहानी का जिस रूप में अनुवाद किया, हम लोग लगभग वही सुनते हैं।* *हरि विनायक* की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी और वे दरबारों और दूसरी जगहों पर कीर्तन गाकर आजीविका चलाते थे। कुछ तो आर्थिक कारणों से और कुछ अपने बेटों को अपना काम सिखाने के लिए उन्होंने अपनी *कीर्तन मंडली* में अलग से कोई संगीत बजाने वाले नहीं रखे। उन्होंने अपने तीनों बेटों को इसी काम में लगा रखा था। *दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव को इसी कारण कोई ख़ास स्कूल की शिक्षा नहीं मिली।* संस्कृत और मराठी जैसी भाषाएँ इनके लिये परिवार में ही सीख लेना बिलकुल आसान था। ऊपर से लगातार दरबार जैसी जगहों पर आने-जाने के कारण अपने समय के बड़े पंडितों के